negative thoughts

हम वही क्यों सोचते हैं जो नहीं सोचना चाहते (Negative Thoughts)?

हमारे दिमाग का खेल बड़ा ही गहरा है। कभी-कभी हम खुद को किसी बात से दूर रखने की कोशिश करते हैं, लेकिन वही बात बार-बार हमारे दिमाग में आती है। जैसे “अब मैं उसके बारे में नहीं सोचूंगा”, लेकिन सेकेंड भर में वही इंसान, वही बात या वही डर मन में छा जाता है। यह एक आम अनुभव है, लेकिन इसके पीछे की वजह उतनी आम नहीं।

असल में, यह एक साइकोलॉजिकल फिनॉमिना है जिसे [Reverse Psychology] या ‘Ironic Process Theory’ कहा जाता है। इस थ्योरी को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डैनियल वेग्नर ने 1987 में प्रस्तुत किया था, और इसके अनुसार जब हम किसी विचार को दबाने की कोशिश करते हैं, तो हमारा दिमाग उसी विचार को और अधिक एक्टिव करने लगता है।

क्या है ‘Ironic Process Theory’?

जब हम खुद से कहते हैं कि “इस बारे में नहीं सोचना है”, तो हमारा दिमाग दो स्तरों पर काम करने लगता है। पहला हिस्सा उस विचार को दबाने में जुटता है, और दूसरा उसे ट्रैक करता है ताकि वह दोबारा न आए। लेकिन यही ट्रैकिंग प्रक्रिया विचार को सतह पर लाकर खड़ा कर देती है।

उदाहरण के तौर पर — आप अगर सोचें कि “मुझे लाल रंग के टमाटर की कल्पना नहीं करनी है,” तो कुछ ही पल में वही लाल टमाटर आपकी सोच का हिस्सा बन जाता है। इसी को कहते हैं मानसिक विरोधाभास।

यह थ्योरी यह भी कहती है कि तनाव, थकान या मानसिक दबाव की स्थिति में [Thought Control] और भी कमज़ोर हो जाती है। जब आप मानसिक रूप से थके होते हैं, तो इन विचारों को दबाना मुश्किल हो जाता है और [Why Negative Thoughts Come] जैसी स्थिति सामने आती है।

क्यों आते हैं नकारात्मक विचार ज़्यादा बार?

नकारात्मक सोच का सीधा रिश्ता हमारी ब्रेन वायरिंग से भी है। हमारा दिमाग खतरे को पहले पहचानने और उससे बचने की कोशिश करता है। इसलिए अगर कोई बात हमें डराती है, परेशान करती है या असहज बनाती है, तो दिमाग बार-बार उसे स्कैन करता है ताकि खतरे से बचा जा सके। ये एक प्रकार का “सर्वाइवल सिस्टम” है — लेकिन जब खतरा असली न होकर सिर्फ मानसिक हो, तब यही सिस्टम उल्टा असर करता है।

कभी-कभी यह हमारे आत्मविश्वास, नींद, और यहां तक कि रिश्तों को भी प्रभावित करता है। जैसे ही हम किसी चिंता या बीते पल को भूलने की कोशिश करते हैं, दिमाग उसी के आसपास घूमता रहता है।

क्या Negative Thoughts से बचा जा सकता है?

इस दिमागी झंझट से बाहर निकलने का पहला तरीका है — स्वीकार करना। आप जिस विचार को जबरदस्ती दबाएंगे, वो उतनी ही ताकत से वापसी करेगा। इसलिए मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि विचारों को नजरअंदाज़ करने के बजाय उन्हें समझने की कोशिश करें।

यहां कुछ आसान और असरदार उपाय दिए गए हैं:

  1. माइंडफुलनेस मेडिटेशन: ध्यान के माध्यम से हम अपने विचारों को देखना सीखते हैं, उन पर प्रतिक्रिया देने के बजाय बस उन्हें महसूस करते हैं।

  2. जर्नलिंग/डायरी लेखन: अपने विचारों को लिखना, उन्हें बाहर निकालने का एक सेफ तरीका है।

  3. सकारात्मक रिप्लेसमेंट: किसी नकारात्मक सोच को दबाने के बजाय, उसे एक पॉज़िटिव या न्यूट्रल सोच से बदलना।

  4. एक्सेप्टेंस थैरेपी (ACT): यह थेरेपी मानती है कि हम सभी विचारों को कंट्रोल नहीं कर सकते, लेकिन उन्हें एक्सेप्ट कर के अपनी लाइफ को बेहतर बना सकते हैं।

निष्कर्ष नहीं देंगे, क्योंकि ‘Dimag Ki Batti’ का मकसद है — सोच जगाना, जवाब नहीं देना।
लेकिन अगली बार जब आप खुद से कहें “ये बात नहीं सोचनी”, तो एक पल रुककर खुद से पूछें — “मैं क्यों डर रहा हूं इस सोच से?” शायद वही डर ही जवाब बन जाए।

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